श्री ककुहास पान्चाल ब्राहमण सभा, भगवान विश्वकर्मा मन्दिर जो कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के, हदय स्थली की एक प्राचीनतम सभा है, जो कि मन्दिर निर्माता/संस्थापक प्रातःकालीन स्मरणीय स्वनाम धन्य रायबहादुर बाबू दुर्गा प्रसाद पुत्र स्व0 गुरूदीन राम द्वारा स्थापित मयवंशीय ककुहास आर्टीजन एसोसिएशन का ही विकसित एवं परिवर्तित रूप है। यूँ तो मन्दिर स्थापना सन् 1891 में हुई तथा एसोसिएशन भी बनी, किन्तु स्वयं राय साहब द्वारा सन् 1918 में श्री ककुहास पान्चाल ब्राहमण सभा की स्थापना करते हुए इसका संविधान/नियमावली का विधिवत् निर्माण किया।
स्मृति शेष ब्रम्हलीन भगवान, श्री विश्वकर्मा जी के उपासक राय बहादुर बाबू दुर्गाप्रसाद जी ने अपनी दुरगामी, समाज हित की सेचा के तहत ही सजातीय विश्वकर्मा बंधुओं को एक विरासत, श्री विश्वकर्मा मन्दिर के रूप में आज से लगभग 125 वर्ष पूर्व प्रदान किया था और आज उनके परिवार के लोग इस विरासत का मान बढ़ाने एवं इसे वर्तमान की आवश्यकता के अनुरूप बनाने एवं विकसित करने हेतु ‘सभा‘ के साथ सतत् रूप से क्रियाशील हैं। इसी का परिणाम है श्री विश्वकर्मा मन्दिर का, आवश्यकतानुसार परिवर्तित, नवीन सुसज्जित आकर्षक भव्य स्वरूप, जिसकी गरिमा को स्वाभिमान सहित बढ़ा रहा है, ’श्री विश्वकर्मा द्वारा’ जो कि ’सभा’ के अथक प्रयास एवं डाॅ. दिनेश शर्मा जी, महापौर, नगर निगम, लखनऊ द्वारा प्रदान की गयी एक ऐतिहासिक भेंट है। जिसका परचम पीढ़ी-दर-पीढ़ी तक लहराता रहेगा, ’सभा’ कृतज्ञ है उनके प्रति।
ककुहास पांचाल ब्राहमण सभा संकल्पित है कि मन्दिर परिसर में भूतल सहित तीन बडें हाल तथा चैथी मन्जिल पर ‘विश्वकर्मा आश्रय’ के रूप में कमरों का निर्माण, ताकि भारतवर्ष के किसी भी कोने से आया हुआ विश्वकर्मा समाज का कोई भी व्यक्ति ’आश्रय‘ के लिए न भटके और इसका उपयो करते हुए गौरव का अनुभव करे तथा मन्दिर सभा के क्रिया-कलापों का अच्छा सन्देश सुदूर देश में जाये। लखनऊ रेलवे स्टेशन के निकट होने के कारण इसकी उपयोगिता व महत्व स्वतः बढ़ जाती है। इसके लिए जहाँ वर्तमान पीढ़ी के कन्धों पर पुरातन की पीढ़ी सौंपा हुआ दायित्व का भार है कि वह विरासत को अपेक्षित रूप से विकसित करते हुए भावी पीढ़ी को हस्तान्तरित करे।