स्तुति श्री विश्वकर्मा जी

स्तुति श्री विश्वकर्मा जी

श्री विश्वकर्मा विश्व के भगवान सर्वाधारणं।
शरणागतं, शरणागतं, शरणागतं, सुख कारणं।।

कर शंख चक्र गदा त्रिशूल दुष्ट संहारणं।
धनु बान धारे निरखि छवि सुर नाग मुनिजन वारणं।।

डमरू कमण्डल पुस्तकं गज सुन्दरं प्रभु धारणं।
संसार हित कौशल कला मुख वेद निज उच्चारणं।।

त्रिय ताप मेटन हार के करतार कष्ट निवारणं।
नमस्तुते जगदीश जगदाधार ईश खरारणं।।

सर्वज्ञ व्यापक हे सत्-चित-आनन्द सिरजन हारणं।
सब करहिं स्तुति शेष शारद पाहि नाथ पुकारणं प्रभु विश्वकर्मणं।।

 

 

आरती श्री विश्वकर्मा जी

हरिहर ब्रहमपुरी निर्माता, सुर, नर, मुनि के आश्रयदाता।
दुःख भंजन सब कष्ट हरी की।। आरति..........

अस्त्र-शस्त्र के हो निर्माता, शिल्प जगत के भाग्य विधाता।
मनु, मय, त्वष्टा, दैवज्ञ, शिल्पी की।। आरति..........

दारूण दोष ताप त्रय नाशक, वेद शास्त्र के ज्ञान प्रकाशक।
रक्षक धर्मनीति अरू न्याय की।। आरति.........

अच्युत चिदा नन्द सतरूपा, पार ब्रहम-मय तेज स्वरूपा।।
पावन कथा विश्व शिल्पी की।। आरति..........

व्यापक सर्व जगत जुग चारी, महिमा तीनहुँ लोक तुम्हारी।
सकल सुरासुर अधिनायक की। आरति.........

सारे जग में तेरी छाया, जहाँ लखू तहं मेरी माया।
धनि-धनि ऐसे कल्प तरू की। आरति.........

संकट क्लेश हरो भवतारो, शरणागत को शीघ्र उबारो।
वन्दर प्रभु के चरण कमल की।। आरति.........

 

छन्द

श्री विश्वपति भगवान के चरण सो सौलइहैं।
करि विनय बहु विधि प्रेम सो मन लाय कीरित गाइहैं।।

संसार की सुख सम्पदा सब भांति सो बर पाइहैं।
गहु शरण ‘‘जाहिल‘‘ करि कृपा भगवान तोहि अपनाइहैं।।

दोहा

श्री विश्वकर्मा भगवान की, मूरत अजब विशाल।
भरि निज नयन विलोकियो, तज नाना जंजाल।।