आरती श्री विश्वकर्मा जी
हरिहर ब्रहमपुरी निर्माता, सुर, नर, मुनि के आश्रयदाता।
दुःख भंजन सब कष्ट हरी की।। आरति..........
अस्त्र-शस्त्र के हो निर्माता, शिल्प जगत के भाग्य विधाता।
मनु, मय, त्वष्टा, दैवज्ञ, शिल्पी की।। आरति..........
दारूण दोष ताप त्रय नाशक, वेद शास्त्र के ज्ञान प्रकाशक।
रक्षक धर्मनीति अरू न्याय की।। आरति.........
अच्युत चिदा नन्द सतरूपा, पार ब्रहम-मय तेज स्वरूपा।।
पावन कथा विश्व शिल्पी की।। आरति..........
व्यापक सर्व जगत जुग चारी, महिमा तीनहुँ लोक तुम्हारी।
सकल सुरासुर अधिनायक की। आरति.........
सारे जग में तेरी छाया, जहाँ लखू तहं मेरी माया।
धनि-धनि ऐसे कल्प तरू की। आरति.........
संकट क्लेश हरो भवतारो, शरणागत को शीघ्र उबारो।
वन्दर प्रभु के चरण कमल की।। आरति.........